गुरुवार, 29 सितंबर 2011

मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो

जय माँ जगदम्बे
दैत्य संघारन वेद उचारन दुष्टन को तुम्ही खलती हो,
खड्ग त्रिशूल लिये धनुबान औ सिंह चढ़े रण में लड़ती हो,
दास के साथ सहाय सदा सो दया करि अनी फते करती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,

आदि की ज्योति गणेश की मातु क्लेश सदा जन के हरती हो,
की कहूँ दैत्यन युद्ध भयो तहं शोणित खप्पर लै भरती हो,
की कहूँ देवन याद कियो तहं धाय त्रिशूल सदा धरती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,

सेवक से अपराध परयो कछु अपने चित्त में ना धरती हो,
दास के काज सवारन को निज जन जानि दया की मया करती हो,
शत्रु के प्राण संघारन को जग तारन को तुम सिन्धु सती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,

मारि दियो महिषासुर को हरि केहरि को तुमही पलती हो,
मधु कैटभ दैत्य विध्वंस कियो नर देवन को तुम्हीं तरती हो,
दुष्टन मारि आनंद कियो निज दासन के दुःख को हरती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,

साधु समाधि लगावत है तिन तिन का तुम्हीं तरती हो,
जो जन ध्यान धरै तुम्हरो, तिनको प्रभुता दै सकती हो ,
तेरो प्रताप तिहूँ पुर में तुलसी जन की मनसा भरती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,

देव तुम्हारी करै विनती उनका तुम काज तुरत करती हो,
ब्रम्हा विष्णु महेश कि हो रथ हाँकि सदा जग में फिरती हो,
चंडहि मुंडहि जाय बधेव तब जायकै शत्रु निपात गती हो,
मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहाँ करती हो,


लेखक -यतिंदर  चतुर्वेदी

32 टिप्‍पणियां:

  1. मोहि पुकारत देर भई जगदम्ब बिलम्ब कहां करती हो। माँ

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    1. आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद मन प्रसन्न प्रफुल्लित हुआ आपको सादर अभिवादन

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  2. जयकारा शेरावाली दा, बोल सांचे दरबार की जय

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  3. अद्भुत स्तुति जय माँ अंबा

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  4. जय माँ विंध्यवाशिनी 🙏🙏🙏

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  5. बहुत ही सुंदर स्तुति है देवी जी की

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  6. Yah bahut sundar bhajn hai, jo Maa ke bhakt hai Prem se bolo Jay mata dee

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