गुरुवार, 29 सितंबर 2011

नवरात्रि क्यों मनाई जाती है और माँ दुर्गा की आराधना क्यों की जाती है

नवरात्रि क्यों मनाई जाती है और माँ दुर्गा की आराधना क्यों की जाती है;............. इसको लेकर दो कथाएँ प्रचलित हैं.... एक कथा के अनुसार लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करा दी, वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया. यह ...बात पवन के माध्यम से इन्द्रदेव ने श्रीराम तक पहुँचवा दी, इधर रावण ने मायावी तरीक़े से पूजास्थल पर हवन सामग्री में से एक नीलकमल ग़ायब करा दिया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। श्रीराम का संकल्प टूटता नज़र आया। सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं माँ दुर्गा कुपित न हो जाएँ,,,,,तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें ..कमल-नयन नवकंज लोचन.. भी कहा जाता है तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दें। श्रीराम ने जैसे ही तूणीर से अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं और कहा कि वह पूजा से प्रसन्न हुईं और उन्होंने विजयश्री का आशीर्वाद दिया।दूसरी तरफ़ रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर वहाँ पहुँच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक ..जयादेवी..भूर्तिहरिणी.. में हरिणी के स्थान पर करिणी उच्चारित करा दिया। हरिणी का अर्थ होता है भक्त की पीड़ा हरने वाली और करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। इससे माँ दुर्गा रावण से नाराज़ हो गईं और रावण को श्राप दे दिया। रावण का सर्वनाश हो गया। एक अन्य कथा के अनुसार महिषासुर को उसकी उपासना से ख़ुश होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वर प्रदान कर दिया था। उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवतओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा,, देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने माँ दुर्गा की रचना की। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए थे जिससे वह बलवान हो गईं, नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुरमर्दिनी कहलाईं,, शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाने वाला पर्व दुर्गा-पूजा और दशहरे के रूप में मशहूर है जबकि चैत्र में मनाया जाने वाला पर्व रामनवमी और बसंत नवमी के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।नवमी के दिन लोग श्रीराम की झाँकियाँ भी निकालते हैं। दक्षिण भारत में पहले दिन विशेष पूजा होती है। आम पल्लव और नारियल से सजा हुआ कलश दरवाजे पर रखा जाता है। इस वर्ष 16 मार्च से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हुआ जबकि पिछले वर्ष यह 27 मार्च से शुरू हुआ था। नवरात्रि में हम शक्ति की देवी माँ दुर्गा की उपासना करते हैं। इस दौरान कुछ भक्त नौ दिन का उपवास रखते हैं तो कुछ सिर्फ़ प्रथम और अन्तिम दिन फलाहार का सेवन करते हैं। शेष दिन सामान्य भोजन करते हैं लेकिन मांसाहार नहीं करते। अपनी-अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार ही उपासना की जाती है। अधिकतर श्रद्धालु दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। दरअस्ल नवरात्रि में उपासना और उपवास का विशेष महत्व है। उप का अर्थ है निकट और वास का अर्थ है निवास। अर्थात् ईश्वर से निकटता बढ़ाना। कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास के माध्यम से हम ईश्वर को अपने मन में ग्रहण करते हैं- मन में ईश्वर का वास हो जाता है। लोग यह भी मानते हैं कि आज की परिस्थितियों में उपवास के बहाने हम अपनी आत्मिक शुद्धि भी कर सकते हैं- अपनी जीवनशैली में सुधार ला सकते हैं। हिन्दू धर्म में उपवास का सीधा-सा अर्थ है आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अपनी भौतिक आवश्यकताओं का परित्याग करना............

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