शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

जिनका ईलाज केवल वध करना ही होता है क्योंकि कहा गया है वधर्हाः आततायीनः
आध्यात्म के जागृति के लिए देव अपमान करने वाले दम्भपूर्ण रावण होते हैं जिनका ईलाज केवल वध करना ही होता है क्योंकि कहा गया है वधर्हाः आततायीनः
मैं अपने आध्यात्म प्रेमी सभी मित्रों को बताना चाहूंगा कि स्वयं के मन में व्याप्त रावण को पहले मारो फिर आध्यात्म की चर्चा करो..
इस संसार में भांति भांति प्रकार के लोग हैं, जिनमें कुछ तो मन की शुद्धता के लिए धर्म कर्म करते हैं तो कुछ दिखावा करते हैं। कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से भक्ति तथा यज्ञ करते नहीं दिखते हैं और ही भक्त होने का पाखंड रचते हैं जबकि समाज में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो धर्म के नाम पर कर्मकांड अथवा यज्ञ करने के लिये दबाव बनाते हैं। अनेक लोग बिना किसी दिखावे के सात्विक जीवन जीते हैं पर चूंकि वह हवन तथा यज्ञ आदि नहीं करते तो लोग उनको नास्तिक होने का ताना देते हैं। सच बात तो यह है कि यज्ञ तथा हवन आदि करने से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य हृदय में तत्व ज्ञान धारण करे। इसके लिये प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। नियमित अध्ययन करने से जिज्ञासा बढ़ती है और अभ्यास से तत्वज्ञान का अनुभव हो जाता है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि-

यथायथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति।
तथातथा विज्ञानाति विज्ञानं चास्य रोचते।।
‘‘जैसे जैसे कोई व्यक्ति शास्त्र का अभ्यास करता है वैसे ही उसे गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है और उसकी प्रवृत्ति और जिज्ञासा ज्ञान विज्ञान में बढ़ती जाती है।’’
एक बात निश्चित है कि हमारे पुराने ग्रंथों में ज्ञान के साथ विज्ञान भी अंतर्निहित है। कुछ लोग आज विज्ञान के युग में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को हेय मानते हैं पर उनको यह पता ही नहीं कि विज्ञान का आधार भी तत्वज्ञान है जिसके कारण हमारे प्राचीन अध्यात्मिक ग्रंथ विज्ञान के विषय में सामग्री से परिपूर्ण हैं।
कुछ लोग मंदिर जाने या यज्ञों तथा हवनों में सक्रिय भागीदारी करने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हैं पर यह उनका ही अज्ञान है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
‘‘शास्त्रों के ज्ञाता कुछ गृहस्थ यज्ञादि नहीं करते पर अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपनी अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करते हैं। उनके लिये लिये नाक, जीभ, त्वचा, तथा कान पर संयम रखना ही एक तरह से महायज्ञ है।
सच बात तो यह है कि धर्म तभी ही प्रशंसनीय है जब वह आचरण तथा कर्म में दृष्टिगोचर हो कि केवल कर्मकांड और दिखावे में। कुछ लोग जो प्रतिदिन मंदिर जाते हैं वह दूसरों को अभक्त समझते हैं जो कि उनके अज्ञान का प्रमाण है। इतना ही नहीं कुछ तो लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन पूजा आदि करते हैं पर व्यवहार में ऐसा अहंकार दिखाते हैं जैसे कि वही भगवान के इकलौते भक्त हों। जो वास्तव में भक्त और ज्ञानी हैं वह दिखावे से अधिक आत्मनियंत्रण तथा आचरण से उसे प्रमाणित करते हैं।


Vinod Kumar Choubey


एक दिन जब अपनी रचना रामचरित मानस लिखने के दौरान तुलसीदास ने लिखा " सीय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी,," (सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिए), उसके बाद वे गाँव की तरफ जा रहे थे तो किसी बच्चे ने आवाज़ दी "महात्माजी उधर से मत जावो, बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है," तुलसीदास बोले हुह कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है अभी तो लिखा था की सबमे राम हैं उको प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा. जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मार दिया और वे गिर पड़े, किसी तरह से वे वहा पहुचे जहा रामायण लिख रहे थे, सीधा चौपाई पकड़ी और फाड़ने जा रहे थे तब हनुमान जी ने कहा क्या कर रहे हो, बोले ये चौपाई गलत है, और उन्होंने सारा वृत्तान्त सुनाया, हनुमानजी बोले चौपाई तो एकदम सही है, आपने बैल में तो भगवान् को देखा पर बच्चे में क्यों नहीं, आखिर उसमे भी तो भगवान् थे वो तो रोक रहे थे तुम नहीं माने, ऐसे ही छोटी घटनाएं हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं, उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते.

तुलसी ! तेरी आज भी जरूरत है।





पारुकान्त देसाई की तुलसी विषयक कविता की निम्न पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी हैं -
जीवन के प्रत्येक अंग में
घुल गया है जहर
तन में, मन में, व्रण में,
प्रण में
कथन में, कवन में !
इस जहर का आकंठ पान करना होगा तुम्हें

साहित्यिक नीलकंठ !
जानता हूँ तुम मर्यादावादी थे
इस के बावजूद

बेलगाम, बेनकाब
होकर लिखना पड रहा है,
क्योंकि -
तेरे द्वारा खींची
गयी आदर्शों की
सारी तसवीरें
आज बदसूरत हैं,
इसीलिए, इसीलिए कहता हूँ
कि
तुलसी !
तेरी आज भी जरूरत है। पारुकान्त देसाई की तुलसी विषयक कविता की निम्न पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी हैं - जीवन के प्रत्येक अंग में घुल गया है जहर तन में, मन में, व्रण में, प्रण में कथन में, कवन में ! इस जहर का आकंठ पान करना होगा तुम्हें साहित्यिक नीलकंठ ! जानता हूँ तुम मर्यादावादी थे इस के बावजूद बेलगाम, बेनकाब होकर लिखना पड रहा है, क्योंकि - तेरे द्वारा खींची गयी आदर्शों की सारी तसवीरें आज बदसूरत हैं, इसीलिए, इसीलिए कहता हूँ कि तुलसी ! तेरी आज भी जरूरत है।

निराधार को आधार एक राम नाम


राम राम राम श्री राम राम राम,
पाप कटें दुःख मिटें लेत राम नाम,,
भव समुद्र सुखद नाव एक राम नाम,
परम शांति सुख निधान नित्य राम नाम,,
निराधार को आधार एक राम नाम,
संत हृदय सदा बसत एक राम नाम,,
परम गोप्य परम इष्ट मंत्र राम नाम,
महादेव सतत जपत दिव्य राम नाम,,
राम राम राम श्री राम राम राम,
मात पिता बंधु सखा सब ही राम नाम,,
भक्त जनन जीवन धन एक राम नाम,,,

Whom to choose..? candidate

Whom to choose..

Few days back during my daily discussion with the friends I came to realize a fact that some of us are having a doubt on “Whom to choose?”

People seem to be having a thought cross over to go for a person or an organization (party).


Now lets discuss both the aspects


Why should we go for a person ?

Spontaneous answers come to me are as follows;

-his character

-his personality

-his familiarity

-his history

-his approach to the problems..

-and so on...



Why should we go for an organization or party?

-its structure

-its management

-its principles

-its attitude towards others

-and more importantly its members.

My personal views about this is that one should always go for principles over person . If one will go after a person hoping that he will bring the change then I don’t agree because success of nation does not depend on a person , rather it depends on its principles. One person may be right , willing to do good but if he is surrounded by the bunch of goons the result will no more be different from the present situation what we have today.



Another major drawback of choosing a person over an organization will lead to a chaos post election as everybody will fall for one’s favourite and an improper structure will lead to another misguided Government and more time will be wasted so think a lot , don’t fall for the personality charm , show faith in values...



Thanks

दुनिया मे क्या औकात है हमारी ?


दुनिया मे क्या औकात है हमारी ?
चीन आँख दिखाता है
पाक के आतंकी मिए धोंस दिखाते है
ऑस्ट्रेलिया मे छात्र पीटते है.....
अमेरिका छात्रो के पैरो मे बेड़ियाँ डालता है....
न्यूजीलेंड मे नेताओ को गालियां मिलती है
गूगल भारत की गर्दन उड़ाता है (कश्मीर).....
ऑस्ट्रिया मे औरतों से कराई जाती है वेश्यावृति ......
हॉकी मे 'फाइनल' मे 12-0 हारते है......
32 देशो के फुटबाल विश्व कप मे कोई क्वालिफ़िकेशन नहीं ....
पुरुलिया हथियार केस: किम डेवी को भारत लाने में सीबीआई फेल
भोपाल कांड के आरोपी को नहीं ला सकते अमेरिका से .....
दाऊद के बारे मे बात नहीं कर सकते
अपने ही लोगो का खून करने वाले कसाब, अफजलों को फांसी नहीं दे सकते
पाकिस्तान के बारें मे बोलते हमारे पीएम और मंत्री की हो जाती हैं पेंट गीली.....
दुनिया भर का जहर यहाँ के लोगो को बेचा जाता है.....
जो कंपनियाँ दुनिया भर मे BAN होती है वे यहाँ व्यापार करती है .....

हम जीतते कहा हैं...........?
8 देशो के क्रिकेट कप मे जिसे यहाँ वर्ल्ड कप कहते है.....
भ्रष्टाचार मे नंबर 1 बनने की है तैयारी.....
आतंकवादियों के साथ अहिंसा करने मे नंबर 1
गौ हत्या करने मे नंबर 1 बनने की है तैयारी....
दुनिया भर के सेकुलर है यहाँ भरे.....
सबसे अधिक मिशनरी कार्यक्रम चलते है यहाँ.....
गरीबी मे नंबर 1 बनने की है तैयारी.....
सरकारी विज्ञापन पर खर्च करने मे है नंबर 1.....
दुनिया की सबसे भ्रष्ट मीडिया है यहाँ की......
यहाँ की संस्कृति को ही मटियामेट करता है बॉलीवुड
यहाँ के अभिनेता चूस रहे है युवाओं को खूब .....

Thought of day

“Any fool can criticize, condemn and complain and most fools do.”
Benjamin Franklin quotes (American Statesman, Scientist, Philosopher, Printer, Writer and Inventor. 1706-1790)