शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

Parijat Tree of Mahabharata Age at

Parijat Tree of Mahabharata Age at Kintur Village in Barabanki in Uttar Pradesh
A Parijat Tree located at Kintur Village in Barabanki District in Uttar Pradesh in India is believed to belong to the age of the Mahabharata. It is mentioned in the Mahabharat that Sri Krishna uprooted the Parijata Tree from the kingdom of Indira, the god of Devas, and presented it to his wife Rukimini. Another legend in the Puranas suggests that Arjuna of Mahabarat brought the Parijata Tree for his mother Kunti, who offered to Shiva.
It is believed by many people that the Parijat Tree mentioned in the Mahabharata is the one found at Kintur Village in Barabanki District. Kintur Village is named after Kunti, the mother of Pandavas. The village is located around 40 km east of Barabanki Town.
But sadly now experts have raised concern about the survival of the tree.It is mentioned in the Harivansh Purana that Parijat is a type of Kalpvraksh and whosoever makes a wish under this tree gets it fulfilled
ईश्वरीय सत्ता को मानने वाले हर धर्मावलंबी के लिए ईश्वर से जुडऩे के लिए ज्ञान और कर्म के अलावा एक ओर आसान उपाय बताया गया है। यह तरीका है - भक्ति। भक्ति का मार्ग न केवल ज्ञान और कर्म की तुलना में आसान माना गया है, बल्कि भक्ति के जो रूप बताए गए हैं, वह व्यावहारिक जीवन में अपनाना हर उस इंसान के लिए संभव है, जो देव कृपा से जीवन में सुख और शांति की कामना रखता है।

हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगदगीता में लिखी बात भक्ति के नौ रूप उजागर करती है -

श्रवणं कीर्तनं विष्णों: स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्य्रमात्मनिवेदनम्।।

इसमें भगवान विष्णु की भक्ति के नौ रूप श्रवण यानी सुनकर, कीर्तन, स्मरण, चरणसेवा, पूजन-अर्चन, वन्दना, दास भाव, सखा भाव और समर्पण भाव को बहुत ही शुभ बताया गया है।

यही नहीं भक्ति के इन नो रास्तों से जिन भक्तों ने भगवान की कृपा पाई, उनके नाम भी धर्मग्रंथों में मिलते हैं। जानते है उन 9 विलक्षण और महान भक्तों के नाम उनके द्वारा अपनाए भक्ति मार्ग के साथ -

श्रवण - राजा परीक्षित

कीर्तन - श्री शुकदेवजी

स्मरण - भक्त प्रह्लाद

चरण सेवा - देवी लक्ष्मी

पूजन-अर्चन - राजा पृथु

वन्दना - अक्रूरजी

दास - श्री हनुमान

सखा या मित्र भाव - अर्जुन

समर्पण - राजा बलि

हिन्दू निशाने पर: एक नंगा सच

हिंदुस्तान में हिन्दू सदियों से निशाने पर रहा है, पहले इस्लामी आतंकियों का जेहादी जुनून फिर अंग्रेजों द्वारा धार्मिक सांस्कृतिक हृदय बिन्दुओं पर कुटिल प्रहार और स्वतंत्रता के बाद से सेकुलरिज्म के डाहपूर्ण षड़यंत्र.! जम्मू कश्मीर में लाखों हिन्दू अपने ही घरों से बेघर कर दिया गया, मुसलमानों के लिए विशेष कानून देकर देश को कमजोर और शरीयती अवधारणा को मजबूत किया गया, हिन्दू बाहुल्य भारत में मुस्लिमों के पहले हक की दुस्साहसिक व निर्लज्ज घोषणाएं की गयीं, सरकारी शिक्षा पाठ्यक्रम में शिवाजी जैसे हिन्दू आदर्शों को लुटेरा भगोड़ा बताया गया, हिन्दू धर्म के प्राणबिंदु राम कृष्ण का उपहास बनाया गया, समूचे इतिहास की हत्या की गयी, धर्मांतरण को सह दी गयी, हिन्दू धर्मगुरुओं और संतों पर कीचड उछाला गया और आज भी जारी है|

आज त्रावंकर पद्मनाभ स्वामी मंदिर की प्राचीन संपत्ति के प्रकाश में आने के बाद हिन्दू द्वेष की यह मानसिकता पुनः नंगी हो गयी है| मैकाले की संतानों और सत्ता के पिशाचों के षड्यंत्रों का ही शायद परिणाम है कि जिस पद्मनाभ स्वामी मंदिर की संपत्ति की रक्षा हिन्दू राजवंश विगत ८०० बर्षो से त्यागपूर्वक कर रहे थे उसे कोर्ट का सहारा लेकर सार्वजनिक कर दिया गया| और अब केरल की नवोदित सेकुलर सरकार राजनैतिक लुटेरों और देशी-विदेशी गिद्धों की नजरें उस अमूल्य संपत्ति पर गड़ चुकीं हैं| इसे तस्करों का षड़यंत्र नहीं तो और क्या कहें कि देश की विरासत का मूल्य फ्रांस के जानकारों द्वारा निकलवाया जायेगा.!
सेकुलर मीडिया अपनी लफ्बाजिओं पर उतर आया, केरल की “मलयालय मनोरमा” जोकि सेकुलरिज्म की ठेकेदार है और इसके लिए उसके executive एडिटर “जैकब मैथ्यू” को WAN-IFRA के प्रेसिडेंट का पद देकर शाबासी भी दी गयी, ने संपत्ति की सुरक्षा चिंताओं को ताक पर रखते हुए तहखानो के नक्से तक छाप डाले| आधुनिकता का डींग हांक-हांक के हिंदी और हिन्दू संस्कृति की गर्दन पे सवार रहने बाले “टाइम्स ग्रुप” के “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” ने तो मंदिर संपत्ति के विवेचन और १ लाख करोड़ की इस सम्पत्ति से देश का कैसे-कैसे भला(?) हो सकता है और मनरेगा और खाद्य सुरक्षा बिल के लिए कितने दिन तक पैसा मिल सकता है, यह बताने के लिए पूरा एक पेज ही भर डाला| दैनिक जागरण जैसे अखबार जोकि भारत की संस्कृति और आत्मा के संवाहक रहे है और जिनका आधार भी धार्मिक जनता ही है शर्मनाक तरीके से सेकुलरिज्म की बेशर्म दौड़ में शामिल होने के लिए सत्य और तथ्य को ताक पर रखकर आम जनमानस की भावनाओं को कुचलते हुए इन अखबारों का अनुसरण करते दिख रहे हैं| मुझे आश्चर्य है कि इन अखबारों ने यह क्यों नहीं बताया कि इस धनराशि से कितने दिनों तक हज सब्सिडी दी जा सकती है.?
हिन्दुओं की आस्थाओं को मजाक समझने वाले ये विश्लेषक आखिर क्या कहना चाहते हैं.? क्या इस देश में अब मंदिरों की संपत्ति जिसमे पुरातत्विक महत्व के अमूल्य रत्न और भगवान् विष्णु की स्वर्णमयी प्रतिमा व आभूषण शामिल हैं को बेचकर मनरेगा चलाई जाएगी.? क्या हिन्दुओ के भगवान् की प्रतिमा गलाकर अब राज्य सरकारें अपना कर्ज उतारेंगी.? क्या अब भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत बेंचकर औद्योगिक विकास किया जाएगा.?
हमारे पर्वत जंगल और नदियाँ और विदेशी कूड़े के लिए (जिसमे नाभिकीय अवशिष्ट भी हैं) जमीन सब बेंच दिए गए, प्रश्न यह है कि उनसे हमे कितना विकास दिया गया.?
भामाशाह की परंपरा का हिन्दू आवश्यकता पड़ने पर आज भी राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की तत्परता रखता है किन्तु उनकी आस्था की बाजारू कीमत लगाने वाले क्या चर्च और मस्जिदों की संपत्तियों से सरकारी खर्च चलाने की बात कहने का साहस रखते हैं.?
भारतबर्ष में वक्फ बोर्ड नाम की संस्था भारत की अकूत अचल संपत्ति को इस्लामिक संपत्ति घोषित कर उस पर कुंडली मारे बैठी है, यह संपत्ति मंदिरों की संपत्ति की भांति श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित दान नहीं वरन वह संपत्ति है जो किसी भी रूप में मुसलामानों से सम्बद्ध रही है|
आज वक्फ के पास ८,००,००० से अधिक रजिस्टर्ड संपत्तियां हैं| ६,००,००० एकड़ से अधिक जमीन वक्फ के कब्जे में है, जोकि अपने विश्व की सबसे बड़ी संपत्ति है, भारतीय रेलवे और रक्षा विभाग की भूमि के बाद देश का यह तीसरा सबसे बड़ा भू स्वामित्त्व है| किन्तु क्या आपको कभी बताया गया कि इस संपत्ति का मनरेगा और खाद्य सुरक्षा के लिए कैसे प्रयोग किया जा सकता है.?
वक्फ की जमीन को यदि किराये पर उठा दिया जाये तो इससे प्रतिबर्ष १०,००० करोड़ रु. की आय होगी जोकि पद्मनाभ स्वामी मंदिर की ८०० बर्षों की संपत्ति को मात्र १० बर्षो में पार कर देगी|
यदि अन्य संपत्ति को छोड़ कर सिर्फ जमीन की बार्षिक आय को ही लें तो यह प्रतिबर्ष उत्तराखंड के कुल बजट (७,८०० करोड़ रु.) से २,८०० करोड़ रु. अधिक होगा, इस आय से प्रति २.५ बर्ष में दिल्ली का बजट, प्रति ३ बर्ष में झारखण्ड का बजट, प्रति ४ बर्ष में मनरेगा का बजट, और प्रति ७ बर्ष में खाद्य सुरक्षा बजट निकल आयेगा| यदि हम १ लाख रु. प्रति व्यक्ति को देकर स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न करें तो तो प्रतिबर्ष १,००,००० व्यक्तियों को रोजगार मिल जायेगा| इमारतों को छोड़कर वक्फ के कब्जे की जमीन कोई सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत भी नहीं जिसका व्यवसायिक उपयोग संभव न हो, किन्तु क्या आपने सेकुलरिस्ट चिंतकों अथवा मीडिया के मुख से ऐसे आंकड़े और तर्क सुने जैसा कि मंदिरों की संपत्ति के बारे में राग अलापा जाता है.?
मंदिरों की संपत्ति श्रद्धालुओं द्वारा समर्पित धन होता है जिसका उद्देश्य धर्मसेवा व प्रसार ही है किन्तु फिर भी देश की वर्तमान आवश्यकताओं को समझते हुए अनेकानेक हिन्दू मंदिर व संस्थाएं उन जिम्मेदारियों को उठा रहीं हैं जिनका नैतिक दायित्व सरकार का है| सत्य साईं ट्रस्ट जिसकी संपत्ति पर मीडिया ने जमकर हंगामा किया ७५० गाँव में पेयजल आपूर्ति के साथ साथ चिकित्सा महाविद्यालय व उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थानों के माध्यम से शिक्षा चिकित्सा प्रदान कर रहा है, इसी तरह शिर्डी साईं ट्रस्ट, तिरुपति बालाजी ट्रस्ट, अक्षरधाम ट्रस्ट, संत आशाराम आश्रम जैसे अनेकानेक हिन्दू आस्था के केंद्र अपने अपने स्तर से बिजली, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, व गरीबों को सीधे आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं| इसके बाद भी इन दुराग्रही तथाकथित राष्ट्रचिन्तकों को मंदिर और संत लुटेरे नजर आते हैं और इनकी संपत्तियों के अधिग्रहण से ही देश की समस्याओं का निदान दिखाई देता है| बेशर्मी के सभी बांध तब टूट जाते हैं जब नेताओं, थानेदारों और ठेकेदारों की जूठन के टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया के कर्णधार अपने लेखो और टेलीकास्ट में शब्दों की कलाबाजियां करते हुए धर्म की मनमानी परिभाषाएं गढ़ते और संतों धर्मगुरुओं को त्याग का उपदेश देते नजर आते हैं.!
वक्फ हिन्दुस्तान के तंत्र को धता बताते हुए ७७% दिल्ली को अपनी संपत्ति बता डालता है और ताजमहल जैसी राष्ट्रीय संपत्ति को इस्लामिक संपत्ति घोषित कर देता है (जुलाई २००५) तब भी इन तथाकथित तर्कविदों और चिंतकों की जीभ केंचुली उतारकर सो जाती है और इनकी आर्थिक गणनाएं दिखाई नहीं देतीं| क्या आप जानते हैं इस बोर्ड की सालाना अरबों की सालाना आय से कितने देशवासियों(या केवल मुसलामानों का ही जैसा कि बोर्ड का उद्देश्य है) का भला होता है अथवा दारुल-इस्लाम की स्थापना के लिए लगातार चलने बाले अभियानों यात्राओं (जिसमे कि विदेशी मौलवियों का आना जाना शामिल है) के खर्चे कहाँ से निकलते हैं.?
राजा महमूदाबाद जोकि शत्रुसंपत्ति घोषित कर अधिग्रहित की जा चुकी संपत्ति पर अपना दावा ठोंकते हैं (यह संपत्ति इनके पूर्वजों की थी जोकि १९४७ में देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे और संपत्ति राजा के नाम भी नहीं की गयी थी अतः यह संपत्ति शत्रु संपत्ति अधिनियम १९६८ के अंतर्गत शत्रुसंपत्ति घोषित कर दी गयी थी) तब यही तर्कशास्त्री उस संपत्ति का देश के किये आर्थिक मूल्य भूलकर उसे उनका हक बताते फिरते हैं और हमारी सरकार शत्रुसंपत्ति को वापस करने के लिए संशोधन विधयेक २०१० तक ले आती है| अकेले सीतापुर लखनऊ में यह संपत्ति लगभग ३०,००० करोड़ रु. है, इसी तरह उ.प्र. व उत्तराखंड के कई जिलों में उनका संपत्ति पर दावा है| इसके बाद सभी शत्रुसम्पत्तियों पर दावे मुखर होने लगें हैं और देश को लाखों करोड़ की चपत लगने की तैयारी है|
हज सब्सिडी के नाम पर प्रतिव्यक्ति लगभग ४५००० रु. हवाईयात्रा का खर्च देश पर डाला जाता है, अन्य सुविधाएँ देने में खर्च होने वाली राशि अलग है| २०१० में १७,००,००० से अधिक मुस्लिमों ने यात्रा की, अर्थात हम १,००,००० रु. प्रतिव्यक्ति के हिसाब से ८०,००० से ८५,००० गरीबों को एक बर्ष में स्वरोजगार दे सकते थे| किन्तु क्या इस तथ्य की वकालत करने की जहमत किसी बुद्धिजीवी ने उठाई.?
इसाई मिशनरियों द्वारा देश में अवैध स्रोतों से से आने वाले हजारों करोड़ रुपयों से गरीब कमजोर लोगों का ईमान ख़रीदा जाता है, क्या देश धन के उन रहस्यमई स्रोतों पर प्रश्न उठाने का अधिकार नहीं रखता.? किन्तु न तो मीडिया और सत्ता के सेकुलरिस्टों की आवाज अथाह धन के स्रोतों पर ही उठती है और न ही धर्मांतरण के षड्यंत्रों के विरुद्ध.!
मायावती, लालू, करूणानिधि, और मधु कोड़ा जैसे नेताओं की संपत्ति से कितने गरीबों का भला हो सकता है, क्या इनसे कोई आंकड़े नहीं बनते.?
राजीव गाँधी की स्विस बैंक में जमा संपत्ति, जिसका खुलासा अमेरिका के दबाब में स्विस बैंक के माद्ध्यम से एक डच मैगज़ीन में हुआ था यदि सोनिया गाँधी देश को सौंप दे तो उससे कितने दिन मनरेगा चलेगी क्या यह हिसाब आपको दिया गया.? सरकार में बिना किसी पद के सोनिया गाँधी ने देश के लगभग १८०० करोड़ रु. पिछले १बर्ष में अपनी विदेश यात्राओं पर बर्बाद किये| ऐसा किस आधार पर किया गया और इन १८०० करोड़ रु. से कितने बेरोजगारों के जीवन को साँसे मिल सकती थीं, मंदिर की संपत्ति को सरकारी कब्जे में लेने की वकालत वालों ने क्या आपको यह बताया.?
यदि नहीं तो हर नाले के कीचड़ से अपने दामन को सजाये इन तथाकथित बुद्धिजीवियों, तर्कशास्त्रियों व चिंतकों के प्रहार देश के हिन्दुओं, देश की संस्कृति व सांस्कृतिक मूल्यों पर ही क्यों होते हैं.? उत्तर एक ही है, बच सको तो बचो……. बचा सको तो बचाओ…… …हिन्दू निशाने पर है..!

BY- वासुदेव त्रिपाठी
मुसलमान कहते हैं कि कुराण ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु इनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनु तथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं कि अल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है...पर आदम शब्द संस्कृत शब्द "आदि" से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सब भाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.

इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भी है "अल्लोपनिषद". चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्

वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाता है.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में "या" शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे "या देवी सर्वभूतेषु....", "या वीणा वर ...." वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं "या अल्लाह"..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.

चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद में लोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लिया ताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म के बजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थे अपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्म से अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एक पुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगर उसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों का वैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटा पाए और मिटा भी नही सकते....

भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर" का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..

चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं--

ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..

जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया...इस तरह से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं...

अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,लेकिन इस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसे सिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान,तजाकिस्था

न,आदि..} घोड़े हरे-भरे स्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..

इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!

चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.ये इस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.

चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमान हर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मन में आएगा ही...अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर पर टिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाता है..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता है क्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकर रखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरक की बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती...!

एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भी पर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी से बचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..

कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .

ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे...

ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह के भेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त के परिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव के प्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वो अपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..

देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत के मुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र "शिथ" भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..

और ये "लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा" इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..

कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए... ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..

प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचाने के लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इस बात का वर्णन होना कि "मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनका कत्ल करो" ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामने झुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावे किसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रात ज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिर इनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरान में..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते...जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयु हजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगों के विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में

कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपसयान में ही दर्शन देने लगे..

धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..

यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता...हिंदु धर्म संस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान ये कामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है...

हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विष बना देते हैं..

मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है...?? ये अफसोस की बात है कि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..

इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरब पर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब में वैदिक संस्कृति के प्रमाण दिए यथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व में ही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछ चित्र जोड़ रहा हूँ...

-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैं जो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुए दिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ में शायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इस पौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभ मानते हैं.....

यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर के संग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगर एथेंस से ६० कि.मी. दूर है.प्राचीनकाल से ही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यह भव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिर से प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथ भी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लग रहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्र को एक देहाती दृश्य का नाम दिया है यूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेक प्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार में जो यूरोपीय इतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्ण नीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही के कारण नष्ट हो रहे हैं.जरुरत है हमें जगने की और पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की..Kindle, Wi-Fi, Graphite, 6" Display with New E Ink Pearl Technology - includes Special Offers & Sponsored Screensavers