मंगलवार, 2 अगस्त 2011

घाघ

घाघ (सं0-1753) अन्तर्वेद के प्रसिद्ध कवि हैं। घाघ अपनी कथोक्तियों, लोकोक्तियों तथा नीति सम्बंधी रचनाओं के कारण लोकविख्यात हैं। इनकी रचनाएँ सामाजिक और ग्रामीण बोलचाल की भाषा में हैं|
कृषि पंडित एवं व्यावहारिक पुरुष होने के नाते घाघ का नाम भारतवर्ष के, विशेषत: उत्तरी भारत के, कृषकों के जिह्वाग्र पर रहता है।
चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ की कहावतें उनका पथप्रदर्शन करती हैं। ये कहावतें मौखिक रूप से प्रायः भारत भर में प्रचलित हैं।
घाघ के जन्मकाल एवं जन्मस्थान के संबंध में बड़ा मतभेद है। शिवसिंह सरोज का मत है कि इनका जन्म सं. 1753 में हुआ था, किंतु पं.रामनरेश त्रिपाठी ने बहुत खोजबीन करके इनके कार्यकाल को सम्राट अकबर के राज्यकाल में माना है। इनकी जन्मभूमि कन्नौज के पास चौधरीसराय नामक ग्राम बताई जाती है। ये दुबे ब्राह्मण थे। कहा जाता है, अकबर ने प्रसन्न होकर इन्हें सरायघाघ बसाने की आज्ञा दी थी, जो कन्नौज से एक मील दक्षिण स्थित है।
अभी तक घाघ की लिखी हुई कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं हुई। हाँ, उनकी वाणी कहावतों के रूप में बिखरी हुई है, जिसे अनेक लोगों ने संग्रहीत किया है। इनमें रामनरेश त्रिपाठी कृत "घाघ और भड्डरी" (हिंदुस्तानी ऐकेडेमी, 1931 ई.) अत्यंत महत्त्वपूर्ण संकलन है।
घाघ के कृषिज्ञान का पूरा पूरा परिचय उनकी कहावतों से मिलता है। उनका यह ज्ञान खादों के विभिन्न रूपों, गहरी जोत, मेंड़ बाँधने, फसलों के बोने के समय, बीज की मात्रा, दालों की खेती के महत्व एवं ज्योतिष ज्ञान, शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया जा सकता है। घाघ का अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है, जिसमें किसान भूमि को स्वयं जोतता है :
किस मास में किधर से हवा चले तो कितनी वर्षा हो, अथवा किस मास की वर्षा से खेती में कीड़े लगेंगे, इसका अच्छा व्यावहारिक ज्ञान उन्हें था। आज भी किसान उनकी ऐसी कहावतों से लाभान्वित होते हैं।
बैल ही खेती का मूलधार है, अत: घाघ ने बैलों के आवश्यक गुणों का सविस्तार वर्णन किया है। हल तैयार करने के लिये आवश्यक लकड़ी एवं उसके परिमाण का भी उल्लेख उनकी कहावतों में मिलता है।
उपलब्ध कहावतों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि घाघ ने भारतीय कृषि को व्यावहारिक दृष्टि प्रदान की। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी और उनमें नेतृत्व की क्षमता भी थी। उनके कृषि संबंधी ज्ञान से आज भी अनेकानेक किसान लाभ उठाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से उनकी ये समस्त कहावतें अत्यत सारगर्भित हैं, अत: भारतीय कृषिविज्ञान में घाघ का विशिष्ट स्थान हैं।

यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी YATINDRA NATH CHATURVEDI