गुरुवार, 19 जुलाई 2012

विचार

आज इस समत्व की आवश्यकता सबसे अधिक सामाजिक क्षेत्र में है। भारतीय समाज की अवधारणा व प्रयोजन आनंद की प्राप्ति है। इसके लिए आवश्यक है कि समाज में व्याप्त विभिन्न दृष्टिकोणों और प्रयोजनों में समतुल्यता हो अर्थात् समाज में कोई विचारधारा विशेष न तो अतिशय उग्र हो और न अत्यंत क्षीण या निर्बल हो। धनी-निर्धन, अभिजात वर्ग तथा जनसाधारण, ग्राम्य और नगर के बीच की दूरी कम हो। स्वार्थ लोलुपता न हो। स्व और आत्म का... चेतनायुक्त विकास महत्वपूर्ण है। यहा बाहरी दुनिया को, समाज को अपने अंतस का सर्वश्रेष्ठ दिए जाने का संकल्प है। हमारे वेदों और साहित्य में प्रयुक्त श्लोक, सूक्ति, ऋचा, मंत्र और दोहे-चौपाई, इसी कल्याणकारी भावना से भरे-पूरे हैं। यह भाव मानवता का संचार करता है और चेतना का अहर्निश विस्तार। गोस्वामी तुलसीदास, वाल्मीकि आज इसीलिए अमर हैं, क्योंकि उन्होंने राम के रूप में एक ऐसा आदर्श हमारे सामने रखा, जिसने जीवन के हर क्षेत्र में समरसता का उदाहरण प्रस्तुत किया। महात्मा गाधी के नेतृत्व में स्वाधीनता की प्राप्ति हेतु देशवासियों ने अपनी निजी सत्ता, धर्म-सत्ता तथा अर्थ-सत्ता का सामूहिकता में लोप कर दिया था। हमारे यहा एक नहीं महापुरुषों के ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जिन्होंने समाज के लिए अपने जीवन को अर्पित कर दिया

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