गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

ब्रह्मण कर्म से नहीं जन्म से ही होता है


भले ही ब्राह्मणों में कई भेद हो . जैसे ........... देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शुद्रो निषादकः I पशुमलेच्छेअपि चांडालो विप्रः दस्विधाह स्मृताः I I अर्थात ,देव,मुनि,द्विज,राजा( क्षत्रिय ) ,वैश्य शुद्र, निषाद ,पशु ,म्लेक्छ ,और चंडाल ,ये दस प्रकार के ब्रह्मण होते है I........ १.देव ब्रह्मण===स्नान संध्या, जप, होम, देवपूजन ,अतिथि शेवा आदि नित्य कर्म करने वाला ब्रह्मण देव ब्रह्मण कहलाता है I २.मुनि ब्रह्मण ==कंदमूल खाने वाला, वनवासी, पित्रिश्रध्पारायण ब्रह्मण, मुनि ब्रह्मण कहलाता हैI ३.द्विजब्रह्मण===वेदांत का अनुशीलन करने वाला, शक्तिरहित, सांख्य योग ब्रह्मण द्विज कहलाता है I ४.क्षत्रिय ब्रह्मण ==संग्राम में सबके सामने शत्रु को अस्त्र से रोकने वाला ,संग्राम विजयी ,धनुर्धर ब्रह्मण, क्षत्रिय ब्रह्मण कहलाता है I ५.वैश्य ब्रह्मण ==कृषि ,वाणिज्य ,और गोरक्षा करने वाला ब्रह्मण विषय ब्रह्मण कहलाता है I ६.शूद्र ब्रह्मण ===लाख ,नमक , दुध ,घी ,मधु (मदिरा )और मांस विक्रेता ब्रह्मण शूद्र ब्रह्मण कहलाता है I ७.निषाद ब्रह्मण ==चोरी डकैती करने वाल ईर्ष्यालु ,परपीड़क,मछली मांस का लोभी निषाद ब्रह्मण कहलाता हैI ८.पशु ब्रह्मण ===ब्रह्मण तत्व को कुछ न जनता हो ,फिर भी जनेऊ के गर्व में चूर रहता हो, वो पशु ब्रह्मण कहलाता हैI ९.मलेक्ष ब्रह्मण ===जो ब्रह्मण कूवा तालाब आदि जलाशयों से पानी भरने या स्नान करने में अवरोध उत्पन्न करता हो वो मलेक्ष ब्राह्मन कहलाता है I १०.चांडाल ब्राह्मन ===ब्राह्मण क्रिया से हीन, महामूर्ख ,कठोर ,निर्दय ब्राह्मन चांडाल ब्राह्मन कहलाता है I वेद सम्मत आठ प्रकार के ब्राह्मण होते है ,जो इस प्रकार हैI ......... मात्रश्चब्रह्मंस्चैव श्रोतियाश्च ततः परम I अनुचान्स्ताथा भ्रूणों ऋषिकल्प ऋषिर्मुनिः II १,मात्र ब्राह्मण २,ब्राह्मन ब्राह्मण, ३.श्रोत्रिय ब्राह्मण ४.अनुचान ब्राह्मण ५.भ्रूण ब्राह्मण ६.ऋषिकल्प ब्राह्मण ७.ऋषि ब्राह्मण ८.मुनि ब्राह्मण ....................... भले ही कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा ज्ञानी हो ,किसी भी विषय का कितना भी बड़ा ज्ञाता हो ,वो उस विषय का मास्टर हो सकता हैI,भले ही उस विषय में उसे पांडित्व हाशील हो जाये ,वो उस विषय का पंडित हो सकता है .............................. पर ब्राह्मण कदापि नहीं हो सकता I उसके लिए उसे ब्राह्मणमाता के कोख से ब्राह्मण रजवीर्य से जनम लेना ही पड़ेगा I......................... गीता का ज्ञान देने वाले प्रकांड पंडित श्रीकृष्ण कभी ब्राह्मण नहीं कहे गए विदुर जी जैसे प्रकांड विद्वान ब्राह्मण नही कहलाये अशवाश्थामा द्वारा घोर घृणित कार्य पांडव के समस्त पुत्रो का वध करने की बाद भी ब्राह्मन होने के नाते द्रौपती द्वारा माफ़ किया गया I............. गुणकर्म से अगर जाति बनती तो जीवन पर्यंत अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करने वाले परशुराम और द्रोणाचार्य क्षत्रिय नहीं बन सके I........... .......................... आज के परिवेश में बात करे तो ........... ब्राह्मन का पुत्र चाहे,उसके पास रहने को घर न हो ,पहनने को कपडे न हो ,खाने को अन्न न हो ,उसे दलित का दर्ज़ा नहीं मिलेगा ,उसकी जाति ब्राह्मन ही रहेगी ,उसे नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा ,चाहे वो खाए बिना मर जाये I वही कोई भी ,जो आरक्षण का पात्र हो हो ,कितना भी बड़ा ज्ञानी हो ,उसके पास बंगला ,गाड़ी,कहने का मतलब सब कुछ हो , फिर भी उसकी जाति वही रहेगी क्यों की वो उस जाति से मतलब रखता है ,उसे ही आरक्षण का लाभ मिलेगा ..........( इसे अन्यथा न लिया जाय,सिर्फ एक उदाहरण के रूप में ले ) व्यक्ति, चाहे किसी भी जाति का हो, अपने जाति ,अपने माता - पिता और अपने पूर्वजो पर गर्व करना चाहिए धन्यवाद........................

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम प्रभुवर ।।
    एक जिज्ञाषा है यदि निवारण हो तो अवस्य करे
    वेद सम्मत आठ प्रकार के ब्राह्मण होते है
    हो सके तो जरा इसका प्रमाण भी प्रस्तुत करे बड़ी कृपा होगी ,

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    1. इतनी जिज्ञासा आप को ब्राह्मण के लिए ही क्यों होती है .....?
      ज़रा अपने कुल-जाती के बारे में भी कुछ बिस्तार से बताये .....?

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  2. कर्म प्रधान विश्व करि राखा जो जस करइ सो तस फल चाखा तुलसी कृत राम चरित मानस की इस चौपाई को क्या आप गलत साबित कर रहे है

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  3. व्रह्मे रमेति च व्राह्मण।''

    जो व्रह्म उपासना नही करता वो व्राह्मण नही होता

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