शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

भगवान् परशुराम

भगवान् परशुराम -

श्रीपरशुरामजी के विषय मेँ कालिका पुराण भागवत महाभारत तथा

पद्मपुराण आदि मे बहुत प्रकाश डाला गया है |...


कालिका पुराण के अनुसार -

इक्ष्वाकुपुत्रविदर्भनरेश रेणु की पुत्री रेणुका से महर्षि जमदग्नि ने विवाह किया ।

जिससे इनके रुमण्वान् सुषेण आदि चार पुत्र हुए तत्पश्चात् सहस्रबाहु के वध

की इच्छा से इन्द्रादि देवताओ द्वारा प्रार्थना किये जाने पर स्वयँ भगवान्

विष्णु ने इन जमदग्निजी के यहाँ रेणुका के गर्भ से परशुराम जी के रूप मे

जन्म लिया ।


सबसे बड़ी विशेषता यह कि ये अपने फरसे (परशु)। के साथ ही प्रकट हुए -


भारावतारणार्थाय जातः परशुना सह ।

सहजःपरशुस्तस्य तं जहाति कदा च न । ।


... यह इनका प्रमुख आयुध है इसे कभी नही त्यागते ।

इसीलिए इहेँ परशुराम कहा जाता है ।


पद्मपुराण के अनुसार जमदग्नि जी ने स्वयं देवराज इन्द्र को यज्ञ से प्रसन्न

करके महाबलशाली परमतेजस्वी और शत्रुसंहारक पुत्रप्राप्त किया जो

सर्वलक्षणसम्पन्न एवं भगवान् विष्णु का अवतार था -


विष्णोरंशाँशभागेन सर्वलक्षणलक्षितम् । प.उ.ष.अ.241/10.


पररशुरामजी गण्डकी नदी के तट पर महर्षि कश्यप से मन्त्रग्रहण करके

अनेक वर्षो तक तप किये । विष्णु भगवान् ने प्रसन्न होकर इहेँ शत्रुसंहारक

फरसा तथा दिव्य वैष्णव धनुष एवं अनेक अस्त्र शस्त्र देकर दुष्ट राजाओँ के


विनाश का निर्देश दिया ।


जब ये बाहर गये हुए थे उसी समय सहस्रार्जुन आकर इनके ध्यानस्थ पिता

जमदग्नि जी की गौ न देने के कारण निर्मम हत्या कर डाली ।

माँ रेणुका छाती पीट पीट कर जोरजोर से रोने लगीँ । रुदन सुनकर परशुरामजी

शीघ्र दौड़ कर आये और प्रतिज्ञा करते हुए बोले - मातः आपने 21 बार छाती

पीटा है ।

अतः मैँ 21बार इन दुष्ट राजाओँ कासंहार करूँगा ।


ध्यान देने की बात यह है कि परशुरामजी के पिता का वध एक पापी राजा ने

किया था इधर भगवान् विष्णु ने भी उन्हे दुष्ट राजाओँ के वध की ही

आज्ञा दी है -


जहि दुष्टान् नृपोत्तमान् - पद्मपुराण उत्तरखण्ड 241वाँ अध्याय श्लोक 41.


अत एव उन्होने मात्र दुष्ट राजाओँ का ही संहार किया सामान्य सज्जन क्षत्रियो

का नही । अतः उन्होने पापी राजवंश का नाश किया।


सहस्रार्जुन जैसे हजारो राजा उनके हाथ से दण्ड पाकर पापमुक्त हुए।


रावण का अत्याचार बढ़ने पर भी इन्होने उसेअनाचार न करने का सन्देश भेजा

था। जिसे सुनाने के बाद सेनापति प्रहस्त ने लड़्केश से कहा -


परशुरामजी को केवल ब्राह्मण समझकर उनकी आज्ञा का उल्लड़्घन नही

करना चाहिए इसी मे आपका कल्याण है अन्यथा आपके मित्र जमदग्निनन्दन

का मन खिन्न हो जायेगा -


ब्राह्मणातिक्रमत्यागो भवतामेव भूतये ।

जामदग्न्यश्च वो मित्रमन्यथा दुर्मनायते । ।



इसलिए ये धारणा मन से निकाल देनी चाहिए कि परशुरामजी किसी जातिविशेष

के विरोधी थे ।


वर्तमान काल मेँ जाति पाँति का भेदभाव न रखकर अत्याचारियों आतड़्कवादियों

और भ्रष्टाचारियो के विरुद्ध अस्त्र उठाने की प्रेरणा देने वालो मे सर्वश्रेष्ठ

मूलपुरुष श्रीपरशुराम जी को आदर्श मानते हुए एकजुट होकर हम सबको

अत्याचार भ्रष्टाचार और आतड़्कवाद से लोहा लेने के लिए कृतसड़्कल्प

होना है ।


हम इन्हे आदर्श मानकर इनका स्मरण करते हुए रण का बिगुल बजा देँ --


>>>>>जय जय महबली दुर्धर्ष भगवान् श्रीपरशुराम<<<<<<


>>>>>आचार्य सियारामदास नैयायिक<<<<<<