शनिवार, 2 नवंबर 2013

शुभ दीपावली (लक्ष्मी आराधना )

श्री सूक्त माता लक्ष्मी की आराधना के मंत्र हैं. यह ऋग्वेद में है.धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्रीसूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी बेकार नहीं जाती है.महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ही शास्त्रों में नवरात्रि, दीपावली या सामान्य दिनों में भी श्रीसूक्त के पाठ का महत्व और विधान बताया गया है .दरिद्रता और आर्थिंक तंगी से छुटकारे के लिए यह अचूक प्रभावकारी माना जाता है.

इस सूक्त की ऋचाओं में से 15 ऋचाएँ मूल 'श्री-सूक्त’ माना जाता है.यह सूक्त ऋग्वेद संहिता के अष्टक 4, अध्याय 4 के अन्तिम मण्डल 5 के अन्त में ‘परिशिष्ट’ के रुप में आया है . इसी को ‘खिल-सूक्त’ भी कहते हैं .मूलतः यह ऋग्वेद में आनंदकर्दम ऋषि द्वारा श्री देवता को समर्पित काव्यांश है.निरुक्त एवं शौनक आदि ने भी इसका उल्लेख किया है. इस सूक्त की सोलहवीं ऋचा फलश्रुति स्वरुप है . इसके पश्चात् 17 से 25 वीं ऋचाएँ फल-स्तुति रुप ही हैं, जिन्हें ‘लक्ष्मी-सूक्त’ कहते हैं . सोलहवीं ऋचा के अनुसार श्रीसूक्त की प्रारम्भिक 15 ऋचाएँ कर्म-काण्ड-उपासना के लिए प्रयोज्य है.अतः ये 15 ऋचाएं ही लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के आगम-तन्त्रानुसार साधना में प्रयुक्त होती हैं .

।।श्री सूक्त।।

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह।।1

हे अग्निदेव, आप मेरे लिए उस लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनका वर्ण स्वर्णकान्ति के समान है ,जो स्वर्ण और रजत की मालाओं से अलंकृत हैं ,जो परम सुंदरी दारिद्र्य का हरण करती हैं और जो चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा से युक्त हैं.

तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।2

हे जातवेदा अग्निदेव,आप मेरे लिए उन जगत-प्रसिद्ध वापस नहीं लौटने वाली (सदा साथ रहनेवाली ) लक्ष्मी जी को बुलाएं जिनके आगमन से मैं स्वर्ण,गौ,अश्व,बंधू-बांधव ,पुत्र-पौत्र को प्राप्त कर सकूँ.

अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।3

जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है,ऐसे रथ पर आरूढ़ गज-निनाद से प्रमुद्कारिणी देदीप्यमान लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ जिससे वे मुझ पर प्रसन्न हों.

कां सोऽस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।4

मुखारविंद पर मधुर स्मिति से जिनका स्वरुप अवर्णनीय है,जो स्वर्ण से आविष्ट ,दयाभाव से आर्द्र देदीप्यमान हैं और जो स्वयं तृप्त होते हुए दूसरों के मनोरथ को पूरा करने वाली हैं कमल पर विराजमान कमल-सदृश उस लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूँ.

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।5

चन्द्रमा के समान प्रभावती ,अपनी यश-कीर्ति से देदीप्यमती, स्वर्गलोक में देवों द्वारा पूजिता ,उदारहृदया ,कमल-नेमि (कमल-चक्रिता/पद्म-स्थिता ) लक्ष्मी देवी, मैं आपका शरणागत हूँ. आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता दूर हो.

आदित्यवर्णे तपसोधिsजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्या अलक्ष्मीः।।6

हे सूर्यकांतियुक्ता देवी , जिस प्रकार आपके तेज से सारी वनसम्पदाएँ
उत्पन्न हुई हैं,जिस प्रकार आपके तेज से बिल्ववृक्ष और उसके फल उत्पन्न हुए हैं,उसी प्रकार आप अपने तेज से मेरे बाह्य और आभ्यंतर की दरिद्रता को विनष्ट कर दें.

उपैतु मां देवसखः कीर्तिष्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। 7

हे लक्ष्मी देवी ,देवसखा अर्थात् महादेव के सखा कुबेर के समान मुझे मणि ( संपत्ति ) के साथ कीर्ति प्राप्त हो , मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूं ,मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें.

क्षुत्पिपासामलां जयेष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान् निर्णुद मे गृहात् ।। 8

क्षुधा और पिपासा (भूख-प्यास) रूपी मलिनता की वाहिका आपकी ज्येष्ठ बहन अलक्ष्मी को मैं ( आपके प्रताप से ) नष्ट करता हूँ . हे लक्ष्मी देवी ,आप मेरे घर से अनैश्वर्य अशुभता जैसे सभी विघ्नों को दूर करें.

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9

सुगन्धित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न होने वाली, किसी से भी नहीं हारनेवाली ,सर्वदा समृद्धि देने वाली ( इच्छाओं की पुष्टि करनेवाली ), समस्त जीवों की स्वामिनी लक्ष्मी देवी का मैं यहां आवाहन करता हूं.

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥10

हे लक्ष्मी देवी , आपकी कृपा से मेरी सभी मानसिक इच्छा की पूर्ति हो जाए, वचन सत्य हो जाय ,पशुधन रूप-सौन्दर्य और अन्न को मैं प्राप्त करूं तथा मुझे संपत्ति और यश प्राप्त हो जाय.

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11

हे कर्दम ऋषि (लक्ष्मी-पुत्र ) , आप मुझ में निवास कीजिये और आपके सद्प्रयास से जो लक्ष्मी देवी आविर्भूत होकर आप-सा प्रकृष्ट पुत्र वाली माता हुई उस कमलमाला-धारिणी लक्ष्मी माता को मेरे कुल में निवास कराइए .

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ 12

जिस प्रकार वरुणदेव स्निग्ध द्रव्यों को उत्पन्न करते है ( जिस प्रकार जल से स्निग्धता आती है ), उसी प्रकार, हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत , आप मेरे घर में निवास करें और दिव्यगुणयुक्ता श्रेयमान माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास कराकर इसे स्निग्ध कर दें.

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 13

हे अग्निदेव, आप मेरे लिए कमल-पुष्करिणी की आर्द्रता से आर्द्र शरीर वाली ,पुष्टिकारिणी,पीतवर्णा,कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा वाली लक्ष्मी देवी का आवाहन करें.

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 14

हे अग्निदेव , आप मेरे लिए दयाभाव से आर्द्रचित्त, क्रियाशील करनेवाली ,शासन-दंड-धारिणी ( कोमलांगी ) , सुन्दर वर्णवाली,स्वर्णमाला-धारिणी सूर्य के समान स्वर्णिम आभामयी लक्ष्मी देवी का आवाहन करें.

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्या हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15


हे अग्निदेव , आप मेरे लिए स्थिर ( दूर न जानेवाली ) लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनकी कृपा से मुझे प्रचुर स्वर्ण-धन ,गौ ,घोड़े और संतान प्राप्त हों.

ll ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ll

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श्री सूक्त के पंद्रह ऋचाओं के बाद सोलवें ऋचा में इसका फल वर्णित है जिस से स्पष्ट है कि इस सूक्त से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.....

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16

जो नित्य पवित्र होकर इस पंचदश ऋचा वाले सूक्त से भक्तिपूर्वक घी की आहुति देता है और इसका पाठ ( जप ) करता है उसकी श्री ( लक्ष्मी ) की कामना पूर्ण होती है.

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