शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

तुलसी का महत्तव

"नमामि शिरसा देवीं तुलसीम" भारतीय जीवन शैली में सुख-समृद्धि के लिए आवश्य बहुतसे कार्यों तथा वस्तुओं को धर्म के साथ जोड़ दिया गया है,ताकि हमर सनातन धर्म भी सुरक्षित और उन्नयन रहे और प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं भी l सनातन धर्म का मुख्य प्रयोजन दैहिक,दैविक एवं भौतिक शांति एवं उन्नयन को माना गया है l विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण,सही हमारे सभी पुराणों सहित श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों में "तुलसी" की महत्ता का विस्तृत वर्णन की गया है l भारतीय सनातन परंपरा में तुलसी को देवी का स्थान प्राप्त है वे भगवान की प्रिय एवं नित्य सहचरी हैं इसीलिए विष्णुप्रिया,हरिप्रिया,वृंदा आदि नामों से अभिहित होती हैं l नारायण स्वरुप शालग्राम का पूजन तुलसी के बिना अपूर्ण और किसी भी वस्तु के बिना केवल तुलसी से सम्पूर्ण माना गया है l तुलसीदल (पत्ता) पधराये बिना अर्पित नैवेद्य को भगवान आरोगते नहीं और उसके अर्पण मात्र से वह हमारे लिए भगवान द्वारा आरोगित प्रसाद बन जाता है l जहां तुलसी का पवित्र पौधा या तुलसीवन होता है वह स्थान वृन्दावन धाम के समान पवित्र तीर्थस्थल हो जाता है l तुलसी के पौधे के मूल (जड़) से उसकी छाया तक में देवताओं एवं समस्त तीर्थों का निवास होता है l साधारण जल में तुलसीदल डाल देने वह जल गंगा के समान तीर्थरूप हो जाता है l तुलसी के स्थान की मृत्तिका(मिट्टी)अत्यंत पुण्यदायी होती है l तुलसी के समीप क्या गे जप-तप महान फलदायी होता है l आसन्नमृत्यु अथवा मृत्यु प्राप्त व्यक्ति तुलसी के सन्निधान से परम मोक्ष गति प्राप्त करता है l पद्मपुराण में बताया गया है कि तुलसी के पत्ते,फूल(मंजरी),मूल(जड़),शाखा,छाल,तना,और मिट्टी आदि सभी पावन हैं - पत्रं पुष्पं फलं मूलं शाखात्व्क्स्कन्ध संज्ञिताम l तुलसीसंभवम सर्वं पावनम मृत्तिकादिकम l l (पद्म पुराण २४/२) श्री पुण्डरीककृत तुलसी स्तोत्र में तुलसीदेवी की स्तुति में कहा गया है कि मैं प्रकाशमान विग्रह वाली भगवती तुलसी को मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूँ , जिनके दर्शन मात्र से पातकी मनुष्य भी सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं l तुलसी के द्वारा यह सम्पूर्ण चराचर जगत रक्षित है ये पापियों के पापों का भी नाश कर देती हैं l इस पृथ्वीतल पर तुलसी से बढ़ कर कोई देवता नहीं है,जिनके द्वारा यह जगत उसी तरह पवित्र कर दिया गया है जैसे भगवान विष्णु के प्रति भक्ति एवं अनुराग भाव से कोई वैष्णव पवित्र हो जाता है :- नमामि शिरसा देवीम तुलसीम विलसत्तनुम l यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात l l तुलस्या रक्षितं सर्वं जग्देतच्चराचरम l या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरै: l l तुलस्या नापरं किंचिद दैवतं जगतीतले l यथा पवित्रितो लोको विष्णु संगेन वैष्णव:l l इस प्रकार आध्यात्मिक तथा धार्मिक क्षेत्र में तो तुलसी की महत्ता सर्व विख्यात है ही,आरोग्य की दृष्टी से भी एक औषधि के रूप में इसका विलक्षण महात्म्य है l इसके परिपक्व पत्ते एक से ढाई इंच तक के होते नेत्राकर तथा सुगन्धित होते हैं,इसकी मंजरी भगवान को अति प्रिय है l वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार पृथ्वी पर तुलसी की लगभग २२ प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें रामतुलसी,श्यामतुलसी या कृष्ण तुलसी,गंधातुलसी,बनतुलसी,कपूरीतुलसी,सफ़ेदतुलसी आदि उल्लेखनीय हैं l कार्तिक मास में तुलसी पूजन और संध्या काल में तुलसी के समक्ष दीप प्रज्वलन का अत्यंत महत्व है, इस पवित्र मास में तुलसी-शालग्राम स्वरुप भगवान के विवाह का भी धार्मिक महत्व है l ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, जयश्री कृष्णा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें