शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

समय

सत्य की निष्ठा और झूट की पराकास्था के मध्य जूझता मैं " समय"
किवदंती कथानक का अमरत्व प्राप्त किये जीवन सिंचित करता मैं "समय"
व्यक्तिगत प्रेम और सामूहिक डाह की अग्नि में झुलसता मैं "समय"
मैं बलवान, मैं क्रूर, मैं आध्यात्म, मैं अनुकूल, मैं प्रतिकूल, मैं "समय"
आदि से अंत की धुरी पर घूमता मैं "समय"
... यथार्थ से कल्पन के पंखो पैर उड़न भरता मैं "समय"
जीवन का दंश और मृत्यु की अमरता के गूढ़ रहस्यों में खोया मैं "समय"
मैं पराक्रमी किन्तु निर्बल, मैं निरीह, मैं तुछ्य, मैं विराट, मैं नगण्य
जीवन का अविरल प्रवाह, प्राणवायु सा बहेता मैं "समय"

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