शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

शिव और जैव-विविधता ही संसार है

भारतीय पौराणिक प्रसंग प्रतीकात्मकता से भरपूर हैं। वाचिक परंपरा अर्थात ओरल ट्रेडिशन में कथा-कथन एक बेहद महत्वपूर्ण विधा रही है, इसके माध्यम से विद्वजन साधारण जनमानस के बीच अच्छे विचार भेजते रहे हैं। आमजन उन विचारों को सहजता से ग्रहण कर पाए इस हेतु तरह-तरह के किस्सों, रूपकों और प्रतीकों के जरिए इन्हें सरलीकृत भी किया गया।

धर्मप्राण आम जनता इस साहित्य को अंगीकार कर ले इसलिए ये आख्यान धर्म का चोला प...हने हुए हैं और सदियों से भारत की हवा में प्रवाहित हैं। ऐसा ही एक पौराणिक परिवार है शिव का परिवार। इस परिवार में एक अद्भुत बात है। विभिन्नताओं में एकता और विषमताओं में संतुलन। कैसे?

शिव परिवार के हर व्यक्ति के वाहन या उनसे जुड़े प्राणियों को देखें तो शेर-बकरी एक घाट पानी पीने का दृश्य साफ दिखाई देगा। शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, मगर शिवजी के तो आभूषण ही सर्प हैं। वैसे स्वभाव से मयूर और सर्प दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि साँप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती स्वयं शक्ति हैं, जगदम्बा हैं जिनका वाहन शेर है। मगर शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। बेचारे बैल की सिंह के आगे औकात क्या? परंतु नहीं, इन दुश्मनियों और ऊँचे-नीचे स्तरों के बावजूद शिव का परिवार शांति के साथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्नतापूर्वक समय बिताता है।

शिव-पार्वती चौपड़ भी खेलते हैं, भाँग भी घोटते हैं। गणपति माता-पिता की परिक्रमा करने को विश्व-भ्रमण समकक्ष मानते हैं। स्वभावों की विपरीतताओं, विसंगतियों और असहमतियों के बावजूद सब कुछ सुगम है, क्योंकि परिवार के मुखिया ने सारा विष तो अपने गले में थाम रखा है। विसंगतियों के बीच संतुलन का बढ़िया उदाहरण है शिव का परिवार।

यहाँ इकोलॉजिकल बैलेंस या पारिस्थितिकीय संतुलन का पाठ भी है। हम सारे प्राणी और हमारा पर्यावरण एक-दूसरे से एक भोजन श्रृंखला के जरिए जुड़े हुए हैं। इसमें कोई भक्षी है, कोई भक्षित है, तो वही भक्षित किसी और का भक्षी है। यदि मनुष्य साँपों को मारे तो चूहे बढ़ जाते हैं और अनाज नष्ट करने लगते हैं। इसी तरह कई प्रकार से यह फूड चेन ऐसा सिलसिला चाहती है जिसे बीच में न तोड़ा जाए। जैव-विविधता से ही संसार चलता है। दुश्मन भी प्रकारांतर से मित्र ही है। संतुलन जरूरी है।

सामाजिक तौर पर देखें तो परिवारों में भी यह जरूरी है कि अलग-अलग मिजाजों, अभिरुचियों, स्वभावों के बावजूद लोग हिल-मिलकर रहें। यह तभी संभव है जब सदस्यों में एक-दूसरे की व्यक्तिगतता के लिए सम्मान हो। एक-दूसरे को स्पेस दिया जाए। अपनी सोच दूसरों पर थोपी या जबर्दस्ती मनवाई न जाए। असहमति के लिए जगह हो, विषमताओं के बावजूद तालमेल हो। मुखिया व अन्य परिपक्व सदस्यों में गले में गरल थामे रखने का धीरज हो। सबको साथ लेकर चलने की आकांक्षा हो।

भारत जैसे नागरिकों की 'बायोडायवर्सिटी' वाले देश में भी विसंगतियों, विभिन्नताओं और विविधताओं के बीच एकता व संतुलन 'शिव' के परिवार की तरह जरूरी है।

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