शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

महामृत्युंजय मंत्र का तार्किक अर्थ

त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ ?



क्या आपने महामृत्युंजय मंत्र के शब्दार्थ पर गौर किया है ?

मृत्यु और अनिष्ट से डरकर भगवान के शरण में जाना और फिर महामृत्युंजय मंत्र का अतार्किक पाठ शायद यही नियति बन गयी है | हमारे ऋषि मुनियों ने विज्ञान को धर्म से जोड़ा था कि लोग धर्मभीरुता में ही सही कम से कम वैज्ञानिक तथ्यों को अपने जीवन में आत्मसात करेंगे | मगर कालांतर में सामाज कि यही धर्मभीरुता धर्माधिकारियों के लिए जीविका पर्याय बन गया | तथ्य को छुपाया गया या तोड़ मरोड़ कर उसे विकृत रूप दे दिया गया | हिन्दुधर्म सिर्फ धर्म नहीं बनाया गया था बल्कि एक सहज जीवन प्रवाह था जिसे पोंगा पंथियों ने अपने फायदे के लिए क्लिष्ट कर दिया है | आइये समझते हैं महाकाल को प्रसन्न करने के लिए जपे जानेवाले महामृत्युंजय के शाब्दिक तथ्य को|

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

(भावार्थ-समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं | विश्व में सुरभि फैलानेवाले भगवान शिव हमे मृत्यु ना की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें|)

आखिर भावार्थ में जो भाव बताया गया है, इस की गहराई क्या है ?
त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?
मृत्यु सत्य है, फिर इससे बचने के लिए, मृत्यु को अपने से दूर रखने का प्रयास क्यूँ? इसके लिए महाकाल की प्रार्थना क्यूँ? कहीं ये चापलूसी तो नहीं !!!???

त्र्यम्बक शायद यही शब्द वो कुंजी है जिसे लोगों ने छुपा कर रखा है | आप किसी आयुर्वेद के मर्मग्य से त्र्यम्बक का अर्थ पूछिए शायद आपकी शंका वो दूर कर सके |

हमारे शरीर के तीन तत्व वात-पित्त-कफ का सामजस्य ही हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है | यह आयुर्वेद का मत है | इनके असंतुलन होने पर शरीर में व्याधियां होती हैं |  यही वात-पित्त और कफ हमारे शरीर के सुगन्धित धातुओं (रक्त, मांस और वीर्य) का पोषण और पुष्टि करते हैं |  अगर ये धातु शरीर में पुष्ट हैं तो जरा-व्याधियां नहीं सताती |
महर्षि सुश्रुत अपनी संहिता के सूत्रस्थान में एक स्थान पर लिखते हैं कि-
विसगार्दानविक्षेपैः सोमसूयार्निला यथा ।

धारयन्ति जगद्देहं वात पित्त कपस्तथा । ।(सु०सू०२१)

अथार्त् जैसे वायु, सूर्य, चंद्रमा परस्पर विसर्ग आदान और विक्षेप करते हुए जगत को धारण करते हैं, उसी प्रकार वात, पित्त और कफ शरीर को धारण करते हैं । इस प्रकार शरीर में दोषों की उपयोगिता और महत्त्व इनके प्राकृत और अप्राकृतिक कर्मों के आधार पर है । यानि प्राकृतावस्था में शरीर का धारण तथा विकृतावस्था में विनाश ।
शिव के त्रिनेत्र हमेशा अधमुंदे दिखाए गए हैं | साम्य-सौम्य की प्रतिमूर्ति शिव जब रौद्र रूप धारण करते हैं तो त्रिनेत्र खुल जाते हैं | उनमे असंतुलन आ जाता है | फिर शिव संहारक बन शव की ढेर लगा देते हैं | अर्थात संसार का विनाश संभव हो जाता है |  यही हाल शरीर का भी है, अगर वात-पित्त-कफ संतुलित हैं तो आप स्वस्थ हैं | अन्यथा इनके असंतुलन से व्याधियां आ सकती हैं और मृत्यु भी निश्चित है |
शिव जब शांत होते हैं तो काल कूट हलाहल का भी शमन कर लेते हैं | वही हाल इस शरीर रूपी शिव का भी है | जब स्वस्थ है, संतुलित है तो यह भी बाह्य विषाणुओं का शमन कर लेता है |

मृत्यु एक अटल सत्य है | और सत्य से डरकर रहना निजहित में नहीं होता | हाँ यह मृत्यु अस्वाभाविक हुयी तो जरुर भय होता है | अपने शरीर में स्थित शिव तत्व को पहचानिये, आप स्वयं शिव हैं | शिव कि अर्चना कीजिये , इस शिव तत्व को पुष्ट कीजिये | जो आपको जरा व्याधियों के भय से हमेशा मुक्त रखे |

तो अगली बार जब आपको मृत्यु से भय लगे तो आप प्रसन्नचित होकर निज शिव कि शरण में जाएँ और करबद्ध प्रार्थना करें-

हम भगवान शिव की आराधना करते हैं , वो हमारे शरीर के तीनों तत्वों (वात-पित्त-कफ) के संतुलन से उत्पन्न सुगन्धित धातुओं(रक्त-माँस-वीर्य) की पुष्टि करें | जिससे हमें मृत्यु नहीं(मृत्यु सत्य है), बल्कि जरा-व्याधियों के भय से मुक्ति मिले |

2 टिप्‍पणियां:

  1. अबे मूर्ख तू वोल क्या रहा ह?कुछ समझ नहीं आ रहा है। महाकाल'लासो का ढेर लगाने वाला, तू क्या वोल रहा है? महामृत्युनजय मंत्र एक पृार्थना मंत्र है।
    जिसके जाप से अकाल मृत्यु टल जाती है।
    और इसका जाप लोग अकाल मृत्यु को टालने के लिए करते हैं न कि महाकाल को पृसंन्न करने के लिए।
    मैं भी इसका रोज जाप करता हूँ अ..मृ.. से वचने के लिए और भक्ति के लिए"ॐ नमः शिवाय"
    का जाप रोज करता हूँ। चूकि शिव अहंकार का नाश करते हैै वो संहारक इस लिए कहलाते हैं हाँ वो जब दानव,मानव और जब सारे देवता भी अधर्म करने लगते हैं जब चारो ओर पाप और असंतुलन छा जाता है तो शिव अपना रूधृ रूप रखकर तीनों लोकों के साथ इन समस्त तारों,आकाश गंगाओं और सारे बृह्माण्ड का अन्त कर देते हैं। और अपने में विलीन कर लेते हैं। इस मंत्र में परमेश्वव शिव से मृत्युमोक्ष की पृार्थना की गइ है। लोग इसलिए इस मंत्र का जाप करते हैं ना कि महाकाल को पृसंन्न करने के लिए।
    ये तुम्हारी महा मूर्खता है कि तुम समझते हो कि ये पाखण्ड,भक्ति के लिए इसे जपते हैं........।
    ना तो तुम शिव को समझ पाये और ना हि वेदों को। तुम जो असली पाखण्डीओं को न समझ पाये हो।त्र्यंबकम में त्र का अर्थ 3और अंबक का अर्थ नेत्र
    होता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. अकाल मृत्यु विधाता द्वारा निर्धारित समय से पहले होने वाली मृत्यु होती है। विधाता ने कुछ पृमुख भाग्य जैसे जन्म,मृत्यु'पती-पत्नीन,संतान सुख आदि लिखा होता ना कि हमारो जीवन का हर पल कि वो कि वो कब सोयेगा,जागेगा,खायेगा आदिं।
    पर जब कोई अति अधर्म या फिर ....।
    तो उसकी अकाल मृत्यु होती है।
    आज कलयुग अधर्म हि अधर्म है आज 50% से ज्यादा लोग अकाल मौत मरते हैं। मनगड़ंत नहीं वना रहा वेदों में हि लिखा है।

    जवाब देंहटाएं