शनिवार, 8 सितंबर 2012

धर्म, सम्प्रदाय, न्याय एवं जनतंत्र के मूल सिद्धांत

धर्म, सम्प्रदाय, न्याय एवं जनतंत्र के मूल सिद्धांत,
भारतीय संविधान तथा जातिवाद मजहब की गंदी राजनीति

“धर्म” शब्द संस्कृत भाषा का मूल शब्द है, जिसका समानार्थक कोई भी दूसरा शब्द विश्व की किसी भी अन्य भाषा में उपलब्ध नहीं है | “धर्म” शास्वत सत्य है एवं सबके लिए कल्याणकारी है तथा “धर्म” के नियम सभी समय में, सभी स्थान पर, सम्पूर्ण विश्व में, सभी व्यक्ति पर समान रूप से लागु होते हैं | “न्याय” का अर्थ धर्म के नियमानुसार सभी व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुरूप उसका फल प्रदान करते हुए अपराधी को समुचित दंड, पीड़ीत व्यक्ति को समुचित क्षतिपूर्ति तथा पीड़ीत- कमजोर व्यक्ति की रक्षा हेतु आगे बढ़कर काम करने वाले व्यक्ति को समुचित पुरस्कार देते हुए हर रूप में धर्म की विजय का समुचित प्रयास है | “राज्य अथवा राष्ट्र और उसकी सरकार की स्थापना का उद्देश्य” हर रूप में धर्म की रक्षा, विजय और प्रोत्साहन द्वारा सभी व्यक्ति को धर्म के नियमानुसार न्याय प्रदान करना, समाज में शांति और क़ानून व्यवस्था बनाये रखना, व्यक्ति एवं समाज के सर्वतोमुखी पोषणीय विकास हेतु आधारभूत संरचना (सिंचाई, व्यापार, बिजली, पानी, आवागमन एवं संचार की सुविधा) का निर्माण तथा बाह्य आक्रमण से व्यक्ति एवं समाज की रक्षा करना है | “जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र” शासन की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत शासन के सम्यक संचालन हेतु सामान्य जनता द्वारा सर्वश्रेष्ठ, सबसे महान, सबसे सुयोग्य और सबसे सक्षम व्यक्ति का चयन (निर्वाचन) कर उसे शासन के संचालन का अधिकार समर्पित किया जाता है |

विभिन्न काल खंड में महावीर, महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह (जीसस क्राईस्ट), पैगम्बर मोहम्मद, संत कबीर दास, मार्टीन लूथर, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि महान समाज सुधारक एवं धर्म सुधारक महापुरुषों ने अपने अपने समय में हो रहे धर्म के नाम पर प्रचलित ढोंग – पाखण्ड का प्रबल विरोध किया तथा ढोंग पाखण्ड से मुक्त समाज के निर्माण द्वारा सम्पूर्ण विश्व में धर्म के प्रोत्साहन का प्रयास किया | परन्तु उनके समर्थक लोग उन्हीं महापुरुषों के नाम पर अलग – अलग सम्प्रदाय (मजहब) की स्थापना कर लिए और ईश्वर की पूजा – पाठ की विधि तथा पूजा स्थल (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा) की बनावट, रीति- रिवाज, पर्व – त्यौहार, सम्प्रदाय विशेष का प्रतीक चिन्ह और वस्त्र विधान (ड्रेस कोड) के अलग - अलग नियम बनाकर अपने समुदाय को श्रेष्ठ बताकर दूसरों से झगडा करने लगे | यही नहीं, एक विशेष सम्प्रदाय (मजहब) के लोग दूसरे सम्प्रदाय के पूजा स्थलों को नष्ट करने लगे तथा सम्प्रदाय (मजहब) के नाम पर अत्याचार, ह्त्या, बलात्कार, लूट, उग्रवाद और आतंकवाद को प्रश्रय दिया जाने लगा, जो उपरोक्त सभी धर्म सुधारक महापुरुषों की शिक्षा और उपदेशों के विरुद्ध है|

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार – “हम भारत के लोगों ने सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष जनतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत राष्ट्र का गठन किया है, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों को सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान करना; विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास एवं ईश्वर की पूजा विधि की स्वतंत्रता प्रदान करना; सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता प्रदान करना; तथा व्यक्ति की गरिमा (मान मर्यादा) की सुरक्षा के साथ - साथ राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को सुरक्षित रखते हुए सभी समुदाय के लोगों के बीच भ्रातृत्व की भावना को प्रोत्साहित करना है |” संविधान के अनुच्छेद 15 (1) एवं 16 (1) के अनुसार – “भारत की सरकार एवं संसद, राज्य सरकार अथवा सरकारी पदाधिकारी द्वारा किसी भी नागरिक के विरुद्ध पंथ (संप्रदाय अथवा रेलीजन), नस्ल (रेस), जाति, लिंग, वंश, निवास स्थान आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा |”

परन्तु “जातिवाद और मजहब की गंदी राजनीति” के तहत भारत के संविधान में अन्य परस्पर विरोधी प्रावधानों का समावेश कर दिया गया, जिसका सहारा लेकर स्वतंत्र भारत में हिन्दू एवम मुसलमान के लिये मजहब के आधार पर अलग - अलग कानून बनाये गये, विभिन्न समुदाय के लोगों को अल्प संख्यक, बहुसंख्यक, पिछड़ी जाति, अगड़ी जाति, दलित, महादलित आदि का दर्जा दिया गया तथा हर क्षेत्र में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी, जो भारतीय संविधान की मूल आत्मा के विरूद्ध है, जो धर्म, न्याय एवम जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों के विरूद्ध है, जो पंथ निरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) के सिद्धान्तों के विरुद्ध है, जो भारतीय जनमानस के बीच वैमनस्य का विष घोलता है, जो राष्ट्र की एकता और अखंडता को विखंडित करता है, जो अयोग्यता एवं अक्षमता को प्रोत्साहित करता है, जो प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन) की समस्या का जन्मदाता है तथा समाज के “सर्वतोमुखी पोषणीय विकास” (ऑल राउंड सस्टेनेबुल डेवलपमेंट) में सबसे बड़ी बाधा है |
----- कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”

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