गुरुवार, 30 जून 2011
नचिकेता
नचिकेता, वैदिक युग का एक तेजस्वी ऋषिबालक। इनकी कथा तैत्तिरीय ब्राह्मण (3।11।8) तथा कठोपनिषद् में उपलब्ध होती है। ये वाजश्रवा ऋषि के पुत्र थे जिन्होंने सर्वस्व दक्षिणावाला "विश्वजित्" यज्ञ किया था। कारणवश रुष्ट होकर पिता ने पुत्र को यमलोक में जाने का शाप दिया। नचिकेता ने यम से तीन वर प्राप्त किए जिनमें सें सबसे महत्वपूर्ण वर अध्यात्मविद्या का उपदेश था। नचिकेता का यह आख्यान महाभरत के अनुशासन पर्व में (71 अध्याय) तथा वराह पुराण में भी (193 अ.- 212 अ.) तात्पर्य भेद से उपलब्ध होता है। किसी अवांतर काल में इस आख्यान का विकास नासिकेतोपाख्यान के रूप में हुआ जिसमें मूल वैदिक कथा का विशेष परिवर्तन लक्षित होता है, इसके लघुपाठवाले आख्यान का सदल मिश्र ने हिंदी गद्य में अनुवाद किया था।
कथा:
वाजश्रवस राजा एक बार विश्वजित यज्ञ करके दक्षिणास्वरूप सब धन दान कर रहे थे। बालक नचिकेता बार-बार हठ करता था कि मुझे भी किसी को दान दे दीजिए। अतएव पिता ने कुपित होकर कहा कि जा तुझे यम को दिया। सत्यपालक बाजश्रवस ने बाद मे उसे यमसदन भेज दिया। यम के पास नचिकेता ने ब्रह्म विद्या सीखी। आध्यात्म-विद्या का उपदेश करने के पूर्व यम ने यद्यपि उसे अनेक प्रलोभन दिए, किंतु नचिकेता अपने लक्ष्य पर अटल रहा। अंत में यम ने सर्वदुःख से मुक्त करने वाले परमात्म-विषय में उसके समस्त संदेह दूर कर उसे गूढ़ ज्ञानोपदेश दिया एवं अनेक रत्नमालाएँ प्रदान कीं। इस कथा को प्रतीक रूप में नये कवियों ने स्पर्श किया है।
anshul dixit
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
jay jay parshuram
जवाब देंहटाएंhttp://vipravarta.org/ par
aapaka swagat hai