गुरुवार, 30 जून 2011

हक़ की लड़ाई लड़ना आत्मसम्मान है (बाबा रामदेव से अब अवैध बाबा)




हक़ की लड़ाई लड़ना आत्मसम्मान है (बाबा रामदेव से अब अवैध बाबा)
हक़ की लड़ाई लड़ना आत्मसम्मान है जो अवश्य लड़ना चाहिए । चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े ....जैसे चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बिस्मील, आदि क्रान्ति कारियों ने कानून को अपने हाथ में लेकर भारत का आत्म सम्मान कायम रखे। हां लेकिन आज देश के गद्दारों के लिए यह कानून का उलंघन माना जाना लाज़मी है जैसे आधी रात में रामलीला मैदान में निरीह आन्दोलनकारियों पर कह़र बरपाया गया। जरूरत है आज फिर उन क्रान्तिकारियों की जो ऐसे आदमखोर से भी नृशंस तानाशाह राजनेताओं को सबक सिखा सकें।
मैं भी मानता हुं कि 50 लाख से भी अधिक साधु-संत गेरूआ वस्त्र की आड़ में किंकर्तव्याविमूढ़ दोकर वगैर काम किए केवल देश की आस्थावान जनता से पाद-पूजन करा कर कई हजार करोंड़ रूपयों का कारोबार कर रहे हैं , सत्य साईं के कमरे से करोड़ों रूपयों का मिलना भी एक प्रकार से देशद्रोह है यदि गहराई से देखा जाय तो ऐसे हजारों बाबा, फकिरों, आध्यात्मिक गुरूओं के गुप्त आशियानों में भारतीय मुद्राएं कैद हैं । लेकिन उन पर कार्वायी नहीं होती, बल्कि उनके यहां वोटबैंक बढ़ाने के लिए राजनेताओं की लाईन लगी रहती है। उन्हीं बाबाओं में से एक बाबा रामदेव भी थे लेकिन सरकार के विरोध में आवाज़ क्या उठाए अब वे अवैध बाबा घोषीत कर उलटे उन्हीं पर देशद्रोह के रूप में प्रदर्शित करना चाहती है। उनके सहयोगी बालकृष्ण पर सी.बी.आई. भींड़ ही चुकी है।
मित्रों ऐसे मे आत्म सम्मान और देश की रक्षा के लिए क्रंतिकारियों की आवश्यकता है।
पं.विनोद चौबे , भिलाई (छ.ग.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें