शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

तुलसी ! तेरी आज भी जरूरत है।





पारुकान्त देसाई की तुलसी विषयक कविता की निम्न पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी हैं -
जीवन के प्रत्येक अंग में
घुल गया है जहर
तन में, मन में, व्रण में,
प्रण में
कथन में, कवन में !
इस जहर का आकंठ पान करना होगा तुम्हें

साहित्यिक नीलकंठ !
जानता हूँ तुम मर्यादावादी थे
इस के बावजूद

बेलगाम, बेनकाब
होकर लिखना पड रहा है,
क्योंकि -
तेरे द्वारा खींची
गयी आदर्शों की
सारी तसवीरें
आज बदसूरत हैं,
इसीलिए, इसीलिए कहता हूँ
कि
तुलसी !
तेरी आज भी जरूरत है। पारुकान्त देसाई की तुलसी विषयक कविता की निम्न पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी हैं - जीवन के प्रत्येक अंग में घुल गया है जहर तन में, मन में, व्रण में, प्रण में कथन में, कवन में ! इस जहर का आकंठ पान करना होगा तुम्हें साहित्यिक नीलकंठ ! जानता हूँ तुम मर्यादावादी थे इस के बावजूद बेलगाम, बेनकाब होकर लिखना पड रहा है, क्योंकि - तेरे द्वारा खींची गयी आदर्शों की सारी तसवीरें आज बदसूरत हैं, इसीलिए, इसीलिए कहता हूँ कि तुलसी ! तेरी आज भी जरूरत है।

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