गुरुवार, 29 सितंबर 2011

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः |
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ||
 
 
. (जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रता रूप से,शुद्ध अन्तःकरण वाले पुरुषों के ह्रदय में बुद्धि रूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धा रूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जा रूप से निवास करती हैं, उन (आप) भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं | हे देवि आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये |)
 
 
 
लेखक- सुरेश मिश्रा

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