गुरुवार, 29 सितंबर 2011

""" जीवन का दिव्य अभिप्राय """

हम सब के अन्दर परमेश्वर बोलते हैँ, परमेश्वर सुनते और देखते हैँ। हमारे अणु-परमाणुओँ मेँ ईश्वर की निस्सीम सत्ता का निवास स्थान है। जहाँ तुम हो वहाँ परमात्मा हैँ, जहाँ परमात्मा हैँ वहाँ तुम हो। तुम्हारा जीवन तथा व्यवहार परमेश्वर के दिव्य प्रबन्ध से सुव्यवस्थित है। परमात्मा तुमसे प्रेम करते है, इसीलिए वे सदैव तुम्हारा मार्ग दर्शन किया करते हैँ।
तुम कभी दुःखी, भ्रान्त या... निराश नहीँ हो सकते, क्योँकि तुम्हारे जीवन के संचालक परमात्मा हैँ। परमेश्वर की आनन्दमयी सत्ता मेँ विकारोँ को स्थान नहीँ है। वह तो सरल,सुखद, निर्विकार, उदार, प्रेममय सत्ता है। परमेश्वर सत्य और शिव संकल्पमय हैँ, तुम्हारे चेतन-अचेतन के साक्षी हैँ। जब परमेश्वर से तुम्हारा इतना निकट का सम्बन्ध है तब संसार के क्षुद्र थपेड़े तुम्हे कैसे उद्विग्न, अशांत और अप्रसन्न कर सकते है।
परमात्मा मंगलमय हैँ। तुम्हारे अन्दर रहकर वे तुम्हारे ही द्वारा शुभ कार्य कराते रहते है। तुम्हे वहीँ जाना चाहिए जहाँ तुम्हारे ईश्वरीय अंश को संतुष्टि प्राप्त हो। तुम्हे वही पवित्र दृश्य देखने चाहिये जिनसे तुम्हारे नेत्रोँ के पृष्ठ भाग मेँ रहने वाले परमात्मा को प्रसन्नता हो। जिसे तुम सुनते हो, वो ईश्वर की दिव्य वाणी है। अतः तुम्हे स्नायुओँ , रक्तकोशोँ तथा रग रग मेँ दिव्य स्फूर्ति का सँचार करने वाली वाणी ही श्रवण करनी चाहिए।
समग्र विश्व मेँएक तत्व ही निज कार्य नाना रूपोँ मेँ प्रकट होकर सम्पन्न कर रहा है ।- एक ही आत्मा , एक ही विराट सत्य वर्तमान है। अन्य तत्व इसी से जीवन शक्ति ले रहे हैँ। यह वही दैवीय तत्व है, जिसकी ओर हम स्वतः खिँचे चले जा रहे हैँ। वही सनातन परमेश्वर हैँ। हम परमेश्वर के पुत्रोँ का कलुषिता, गंदगी, अभद्रता से कोई सम्बन्ध नहीँ हो सकता। यदि आज हम संसार के माया, मोह , वासना के कीचड़ मेँ फंसे हुए हैँ तो इसका अभिप्राय ए नहीँ कि हमेँ कभी दैवी तत्व का ज्ञान ही न हो। अवश्य ही एक दिन उस महाप्रभावशाली तथा जीवनप्रद दैवीतत्व का अनुभव होगा। हमारे जीवन का इससे दिव्य अभिप्राय क्या कुछ और हो सकता है।

।। आचार्य कश्यप ।।।

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