गुरुवार, 29 सितंबर 2011

मनुष्य जन्म

संसार मे जितनी भी प्रकृति है जितने जीव जन्तु कीडे, मकोडे, पषु पक्षी, जल चर, आदि यहा तक कि वृक्ष, पत्थर भी प्रकृति के रूप है । देवता, किन्नर गन्धर्व आदि जितनी भी योनियां इस भव सागर मे है उन सब में मनुष्य को जितने भी आज तक सन्त महापुरूश हुए है या वेद पुराण हुए सबने सर्वोपरि माना है । कुछ हम भी अपने विवके द्वारा थोडी देर संसारी जीवो को देखें तो लगता है कि मनुश्य मे सभी षक्तियां मौजूद है... अगर वह अपने मे प्रकट कर लेता है तो हर षक्ति उसके अन्दर है । अब प्रष्न उठा कि ये षक्ति क्या है और कैसे प्रकट हों, तो बडी सीधी बात है कि हर प्रकार की कला उस कला के माहिर से प्राप्त की जा सकती है । जैसे इंजीनियर बनने के लिए इंजीनियर के पास जाना पडेगा , डाक्टर के लिए डाक्टर के पास जाना पडेगा, अतः इसी प्रकार हर क्षेत्र मे उसी क्षेत्र के माहिर से षिक्षा लेनी पडेगी ।
ये ज्ञान केवल मनुश्य जीवन मे ही सम्भव है इसके लिए अन्य कोई योनि नही है । इसी लिए मनुश्य जन्म को सभी योनियों मे सर्वोपरि माना है ।
उत्पति:
संसार के सभी जीवो की उत्पति को चार वर्गो मे बांटा गया है ।
1. अन्डज - जो जीवों की उत्पति अन्डा से पैदा होते है ।
2. सेतज - जो जीव पसीने से पैदा होते है ।
3. जेरज - जो जीव जेर या झीली से पैदा होते है ।
4. उद्भिज - जो जीव जमीन से या गर्मी से पैदा होते है ।
इनको चार खाने भी बताया गया है क्योंकि पूर्ण उत्पति इन्हीं चार खानो की देन है । इन चार खानो मंे फिर अलग-अलग योनियां है जो तत्वो के आधार पर चैरासी लाख प्रकार की है ।
1. एक तत्व की प्रवलता: 30 लाख वृक्ष पौधो आदि
2. दो तत्वो की प्रवलता: 27 लाख कीडे मकोडे आदि
3. तीन तत्वो की प्रवलता: 14 लाख पक्षी, जल के जीव आदि
4. चार तत्वो की प्रवलता: 9 लाख पषु जानवर आदि
5. पांच तत्वो की प्रवलता: 4 लाख मनुश्य, देवता, किन्नर गन्धर्व आदि ।
अतः इसी प्रकार विवेचना से लगता है कि पूर्ण पांचो तत्वो के आधार पर भी मनुश्य इस संसार मे देह धारियों मे सबसे प्रथम स्थान पर है ।
अब प्रष्न उठा के मनुश्य जन्म सबसे उपर है तो इसका क्या काम है इसका काम तो केवल प्रकृति के रचियता मे अभेद होना है लेकिन काल रूपी परमात्मा जो दयाल षक्ति का दूसरा रूप है उसकी माया के जाल में फंसा रहता है और पूरा जीवन ऐसे ही निकल जाता है उसे अस्ल परमात्मा का बोध नही हो पाता है । क्योंकि से भवसागर केवल भोगने का स्थान है यहां कोई भी वस्तु सत्य नही है अर्थात सदा सदा के लिए टिकने वाली हर चीज कुछ दिनो साल आदि मे समाप्त हो जाती है और फिर दुबारा आ जाती है । अतः ये चक्र चलता रहता है ये कभी समाप्त नही होता । इसको माया चक्र कहते है । अब इस माया जाल से निकलने का रास्ता क्यां है तो हर युग मे पूर्ण सन्त माहत्मा आते है । और आकर जीवो को दया मेहर करके उपदेष भी देते है कि भाई तुम क्या कर कहे ये देष तुम्हारा नही है । यहां तुम थोडे समय के लिए ये समय परमात्मा ने अपने से मिलाव को दिया है । आओ परमात्मा से मिले लेकिन काल का ऐजेन्ट मन जो वृहम का रहने वाला है वह कहता है कि से संसार ही सब कुछ है सन्तो के पास कुछ नही है । क्यांेकि अगर मन का कहना न मानो तो वह सन्तो के पास चला जाएगा और काल से दूर हो जाएगा । अतः फिर भी सन्तो को दया आती है और जीव को चैरासी के जेल खाने से छुडाने हर युग समय मे आते है


लेखक- संतोष तिवारी

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