गुरुवार, 19 जुलाई 2012

विज्ञान के अछूते पहलू

जिन्हें भी भौतिक विज्ञान की थोड़ी जानकारी होगी, वे जानते होंगे की
प्रत्यास्थता पदार्थों का वह गुण है जिसके प्रभाव से बाहरी दवाब पड़ने पर भी
वह अपने आकार को दुबारा पा लेते हैं।
यह पदार्थों के ऐसा गुण है, जिससे वाह्य बल लगाने पर उसमें विकृति आती है।
लेकिन बल हटते ही वह अपनी मूल स्थिति में आ जाता है।
... हम सब जानते हैं कि ब्रिटिश भौतिक शास्त्री Robert Hooke ने सन 1676 ईस्वी में
एक नियम भी दिया। इसके अनुसार, किसी प्रत्यास्थ वस्तु की लम्बाई में परिवर्तन,
उस पर आरोपित बल के समानुपाती होता है।

अब भारतीय हिन्दू विद्वान श्रीधराचार्य की चर्चा कि जाए। 991 ईस्वी में
इन्होंने एक श्लोक लिखा :

ये घना निबिड़ाः अवयवसन्निवेशाः तैः विशष्टेषु
स्पर्शवत्सु द्रव्येषु वर्तमानः स्थितिस्थापकः स्वाश्रयमन्यथा
कथमवनामितं यथावत् स्थापयति पूर्ववदृजुः करोति।

इसका मतलब है:

लचीलापन सघन बनावट वाले पदार्थों का मौलिक गुण है। यह वाह्य बल लगाने के
बावजूद पदार्थ को वापस उसके मूल आकार में आने में मदद करता है।

स्पष्टतः हिंदुओं को पश्चिम से लगभग 7 शताब्दी पूर्व ही इसका ज्ञान था

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