गुरुवार, 19 जुलाई 2012

भगवान श्री कृष्ण जी की वाणी
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“हे अर्जुन! न वेदों से, न तप से, न दान से, न यज्ञ से, न योग और न मुद्रा आदि क्रियाओं से ही इस प्रकार तत्त्व रूप ‘मैं’ देखा जा सकता हूँ, जैसा मेरे को तुमने देखा है”। (श्रीमद भगवत गीता से)

भगवान श्री विष्णु जी... की वाणी
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“वेद पुराणों को जानता हुआ भी जो पुरुष परमार्थ तत्व को नहीं जानता, ऐसे उस विडम्बक का पड़ना और बोलना सब कुछ कौवों की तरह केवल टाय-टाय ही है”।

“मुक्ति न तो वेदों के अध्यन से होती है और न तो शास्त्रों के पड़ने से ही। मुक्ति तो हे गरुण केवल तत्त्वज्ञान से ही प्राप्त होती है”।

“परमब्रह्म कल्याण रूप अद्वैत है। वह कर्मकाण्ड, योग-साधना, मुद्राओं आदि क्रियाओं के परिश्रम से नहीं प्राप्त होता है और न करोड़ों शास्त्रों के पड़ने से ही मिलता है, वह केवल गुरु के सदुपदेश से ही मिलता है”।

“तभी तक ही तप, व्रत, तीर्थटन, जप, होम और देव पूजा आदि है तथा तभी तक ही वेद, शास्त्र और आगमों की कथा है, जब तक कि तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होता। तत्त्वज्ञान प्राप्त होने पर ये सब कुछ भी नहीं है”। (गरुण पुराण से)

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